short Stories in Hindi with Moral for Kids
शीर्षक: सोना और लोहा (सोना और लोहा)
एक छोटा सा गाँव था जिसमें एक सोना बनाने वाला (सुनार) और एक लोहा बनाने वाला (लोहार) रहता था। दोनों अपने काम में माहिर थे, लेकिन उनका स्वभाव बिल्कुल अलग था। सोना बनाने वाला हमेशा गर्व करता और सोचता कि उसका काम सबसे महत्वपूर्ण है, जबकी लोहा बनाने वाला साधारण और विनम्र था।
एक दिन, गाँव के राजा के मंत्री ने सोना बनाने वाले को बुलाया और कहा, “राजा के लिए एक सुंदर ताज बनाना है। तुमसे अच्छा ये काम कोई नहीं कर सकता।”
सोना बनाने वाला बहुत खुश हुआ और बोला, “मैं इसे बनाकर राजा के सिर का गौरव बढ़ाऊंगा!”
लोहा बनाने वाला हमें वक्त वहां खड़ा था और उनकी बात सुन रहा था। उसने सोचा, “मैं तो सिर्फ लोहे के औजार बनाता हूं। क्या मेरा काम इतना महत्तवपूर्ण बन सकता है?”
सोना बनाने वाला अपने काम में लग गया। दिन और रात की मेहनत के बाद उसने एक ताज बनाया जो चमकदार और बहुत सुंदर था। सब लोग हमें ताज की टैरिफ कर रहे थे। ताज को राजा के पास ले जाया गया और उन्हें बहुत खुशी मिली।
कुछ दिनों बाद, एक दुश्मन सेना ने राजा के गांव पर आक्रमण कर दिया। राजा ने अपने सैनिकों को युद्ध के लिए बुलाया, लेकिन एक समस्या थी। गाँव के हथियार पुराने और कमज़ोर हो गए। राजा ने लोहा बनाने वाले को बुलाया और कहा, “हमारी सेना के लिए नए हथियार बनाने की ज़रूरत है। तुम्हें तुरंत काम शुरू करना होगा।”
लोहा बनाने वाला बिना किसी शिकायत के काम में लग गया। उसने तलवारें, ढाल, और तीरों के नोक बनाए। उसका काम जल्दी और अच्छी तरह से हो गया। जब सेना ने नये हथियार प्राप्त किये, तब उन्हें दुश्मन सेना का सामना करना पड़ा और जीत हासिल की।
युद्ध के बाद, राजा ने सोना बनाने वाले और लोहा बनाने वाले दोनों को बुलाया। राजा बोला, “ताज सुंदर है और मेरे गौरव को दिखाता है, लेकिन लोहा बनाने वाले के हथियारों ने हमें युद्ध में विजय दिलाई। तुम दोनों का काम अपनी जगह महत्वपूर्ण है।”
सोना बनाने वाला समझ गया कि हर काम की अपनी एक अलग जगह होती है। उसने लोहा बनाने वाले से माफ़ी माँगी और बोला, “मुझे ग़लतफ़हमी थी कि सिर्फ मेरा काम महत्वपूर्ण है। तुम्हारा काम सच में बहुत ज़रूरी है।”
उस दिन के बाद, दोनों ने एक दूसरे का सम्मान करना सीखा और अच्छे दोस्त बन गए।
कहानी की नीति:
हर काम महत्व पूर्ण होता है, छोटा या बड़ा होने की कोई बात नहीं। सबका अपना योगदान होता है जो समाज और देश के लिए जरूरी है।
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शीर्षक: कौवा और घड़ा (कौवा और घड़ा)
एक गर्मी का दिन था. एक कौवा आसमान में इधर-उधर उड़ता रहा, लेकिन उसे कहीं भी पानी नहीं मिला। धूप तेज़ थी, और उसका गले में जलन हो रही थी। थकन के करण, वो एक पेड़ की शाख पर बैठा और सोचने लगा, “अगर मुझे जल्दी पानी नहीं मिला, तो मैं जीवित नहीं रहूंगा।”
थोड़ी देर बाद, उसकी नज़र एक खेत के पास रखे एक पुराने घड़े पर पड़ी। वो तुरत उड़ कर घड़े के पास गया। उसने देखा कि घड़े में थोड़ा सा पानी है, लेकिन पानी घड़े के नीचे के कोने में था, और उसकी चोंच वहां तक नहीं पहुंच सकती थी।
कौवा निराश नहीं हुआ. उसने सोचा, “मुझे कुछ समझ-बूझ से काम लेना पड़ेगा।” उसने आस-पास देखा और सोचने लगा कि कैसे वो पानी तक पहुंच सकता है। तभी उसकी नजर छोटी-छोटी पत्थरों पर पड़ी जो घड़े के पास बिखरे हुए थे।
कौवे ने तुरेंट एक प्लान बनाया। उसने एक पत्थर उठाया और घड़े के अंदर डाल दिया। उसने देखा कि पानी थोड़ा ऊपर आ गया। ये देख कर उसका हौसला बढ़ गया। फिर उसने एक और पत्थर उठाया और घड़े में डाला। धीरे-धीरे, वो पत्थर उठाता गया और घड़े में डालता रहा। हर बार जब पत्थर घड़े में गिरता, पानी थोड़ा और ऊपर आ जाता।
कुछ देर के बाद, पानी इतना ऊपर आ गया कि कौवा अपनी चोंच से पानी पी सकता है। उसने घड़े से ठंडा पानी पिया और अपनी प्यास बुझाई। फिर वो ख़ुशी-ख़ुशी आसमान में उड़ गया।
कहानी की नीति:
समस्याओं का समाधान सूझबूझ और धैर्य से होता है। अगर सोच-विचार से काम लिया जाए, तो हर कहानी को पार किया जा सकता है।
शीर्षक: चालाक लोमडी और सीधा सादा बकरी (चालाक लोमड़ी और सरल बकरी)
एक बार की बात है, एक घने जंगल के पास एक नाला था। एक दिन एक छलक लोमड़ी पानी पीने के लिए नदी के किनारे गई। पानी के करीब एक गहरा कुआँ था जिसमें अचानक पानी गिर गया। कुआं इतना गहरा था कि वो जितनी कोशिश करे, वो बाहर नहीं निकल पा रही थी।
अब लड़की का दिमाग तेज़ था, और उसने तुरंट कोई चाल चलने का सोचा।
कुछ देर बाद एक सीधा-सादा बकरी वहां से गुज़रा। बकरी ने कुआं के पास खादी लोमडी को देखा और पूछा, “अरे लोमड़ी बहन, तुम यहां क्या कर रही हो?”
लोमडी ने शातिर चाल चली और बोला, “ओह, मैं यहां इसलिए हूं क्योंकि ये पानी बहुत मीठा और स्वादिष्ट है। तुमने इसे नहीं पिया तो क्या किया? आओ, तुम भी नीचे आकर इस पानी का मजा लो!”
बकरी पानी का स्वाद लेने के लिए लालच में आ गई। उसने बिना सोचे-समझे कुआं के अंदर छलांग लगा दी। अब बकरी भी कुआं के अंदर फंस गयी.
लोमडी ने मौका देखते ही बकरी से कहा, “देखो, अब हम दोनो यहाँ हैं। लेकिन अगर तुम अपनी जोड़ी ऊंचा करके मुझे सहारा दो, तो मैं बाहर निकल जाऊंगी। उसके बाद मैं तुम्हें भी बाहर निकलने में मदद करूंगी।”
सीधी-सादी बकरी ने लड़की की बात मान ली और उसने अपनी जोड़ी ऊंचा करके ऊपर चढ़ने दिया। लोमडी तुरंट बकरी के कंधों पर चढ़कर कुआं से बाहर आ गई।
जैसी ही लंबी बहार निकली, उसने जल्दबाजी में बकरी से कहा, “धन्यवाद, बकरी भाई! तुम्हारे जैसे बुद्धू लोग ही समझदार लोगों के काम आते हैं।” ये कहकर जंगल की तरफ भाग गई।
बकरी ने पछताया, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। उसने सोचा, “मुझे बिना सोचे किसी की बात नहीं मान लेनी चाहिए थी।”
कहानी की नीति:
हमेशा सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए और किसी पर अंधविश्वास नहीं करना चाहिए। हर बात को समझने के बाद ही फैसला लेना चाहिए।
शीर्षक: मूर्ख बंदर और स्वार्थी मगरमच्छ(The Foolish Monkey and the Selfish Crocodile)
एक बार की बात है, एक बंदर था जो नदी के पास एक बड़े पेड़ पर रहता था। पेड़ मीठे, रसीले फलों से भरा हुआ था, और बंदर को अपने दोस्तों के साथ इन फलों को बाँटना बहुत पसंद था। एक दिन, एक मगरमच्छ नदी के किनारे आया। मगरमच्छ थका हुआ और भूखा लग रहा था।
बंदर ने उसे देखा और कहा, “अरे, मगरमच्छ! तुम थके हुए लग रहे हो। क्या तुम भूखे हो? आओ, कुछ फल खाओ।”
मगरमच्छ ने खुशी-खुशी सहमति जताई और बंदर द्वारा दिए गए फल खाए। फल स्वादिष्ट थे, और मगरमच्छ ने आभार महसूस किया। समय के साथ, बंदर और मगरमच्छ दोस्त बन गए। हर दिन, बंदर पेड़ से सबसे मीठे फल तोड़ता और उन्हें मगरमच्छ के लिए फेंकता। वे घंटों बातें करते, हँसते और कहानियाँ साझा करते।
एक दिन, मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को अपने नए दोस्त के बारे में बताया। वह ईर्ष्यालु हो गई। “तुम बंदर को अपना दोस्त कैसे कह सकते हो?” उसने पूछा। “मैं उसका दिल चखना चाहता हूँ! यह उतना ही मीठा होना चाहिए जितना कि वह हर दिन खाता है।”
मगरमच्छ हैरान रह गया। “लेकिन वह मेरा दोस्त है,” उसने विरोध किया।
उसकी पत्नी ने जोर देकर कहा, “अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो मुझे उसका दिल लाकर दो!” अनिच्छा से, मगरमच्छ सहमत हो गया।
अगले दिन, मगरमच्छ बंदर के पास गया और कहा, “प्रिय मित्र, मेरी पत्नी ने आपको हमारे घर पर रात के खाने के लिए आमंत्रित किया है। कृपया मेरे साथ आओ!”
बंदर रोमांचित हो गया। “सच में? वह बहुत दयालु है! मुझे उपहार के रूप में कुछ फल लाने दो,” बंदर ने कहा और नदी पार करने के लिए मगरमच्छ की पीठ पर कूद गया।
आधे रास्ते में, मगरमच्छ ने तैरना बंद कर दिया। “मुझे आपको कुछ बताना है,” उसने हिचकिचाते हुए कहा।
बंदर ने पूछा, “क्या बात है, मेरे दोस्त?”
मगरमच्छ ने आह भरी और कबूल किया, “मेरी पत्नी आपका दिल खाना चाहती है। इसलिए मैं आपको अपने साथ लाया हूँ।”
बंदर हैरान था लेकिन जल्दी से एक योजना के बारे में सोचा। वह शांत रहा और बोला, “ओह, तुम्हें मुझे पहले ही बता देना चाहिए था! मैंने अपना दिल पेड़ पर ही छोड़ दिया है। चलो वापस चलते हैं, और मैं इसे तुम्हारी पत्नी के लिए ले आता हूँ।”
मूर्ख मगरमच्छ ने उसकी बात पर विश्वास किया और वापस पेड़ पर तैर गया। जैसे ही वे किनारे पर पहुँचे, बंदर कूद गया और सबसे ऊँची शाखा पर चढ़ गया।
“मूर्ख मगरमच्छ!” बंदर ने पेड़ के ऊपर से चिल्लाते हुए कहा। “तुमने हमारी दोस्ती को धोखा दिया। मैंने तुम पर भरोसा किया, लेकिन तुमने मुझे मारने की कोशिश की। वापस जाओ और अपनी पत्नी से कहो कि वह कभी मेरा दिल नहीं लेगी!”
मगरमच्छ को शर्मिंदगी महसूस हुई और वह चुपचाप तैरकर चला गया। उस दिन के बाद से, बंदर ने फिर कभी किसी पर आँख मूंदकर भरोसा नहीं किया।
कहानी की सीख:
स्वार्थी मित्रों से सावधान रहें जो केवल अपने लाभ के बारे में सोचते हैं। सच्ची दोस्ती विश्वास और निस्वार्थता पर आधारित होती है।
भुतहा बरगद का पेड़(The Haunted Banyan Tree)
घने जंगल के किनारे बसे एक छोटे से गाँव में, एक प्राचीन बरगद का पेड़ था जो ऊँचा और अशुभ था। गाँव वालों का मानना था कि यह पेड़ शापित था और वहाँ एक भूत रहता था। सूर्यास्त के बाद कोई भी उसके पास जाने की हिम्मत नहीं करता था।
हालाँकि, अर्जुन नाम का एक जिज्ञासु लड़का भूतों में विश्वास नहीं करता था। वह बहादुर था, लेकिन जिद्दी भी था। जब भी कोई भूतिया पेड़ का जिक्र करता, तो वह हँसता और कहता, “भूत जैसी कोई चीज़ नहीं होती! यह सब तुम्हारी कल्पना में है।”
एक शाम, जब सूरज ढलने लगा और आसमान गहरे नारंगी रंग में बदल गया, तो अर्जुन के दोस्तों ने उसे अकेले बरगद के पेड़ पर जाने की चुनौती दी। “अगर तुम इतने बहादुर हो, तो साबित करो!” उन्होंने चिढ़ाते हुए कहा। उन्हें यह दिखाने के लिए दृढ़ संकल्पित कि वह डरता नहीं है, अर्जुन ने चुनौती स्वीकार कर ली।
एक छोटी सी लालटेन लेकर, वह पेड़ की ओर चल पड़ा। जैसे-जैसे वह शांत जंगल से गुज़रता गया, हवा में पत्तियों की सरसराहट और दूर से उल्लू की आवाज़ भरती गई। अर्जुन ने शांत रहने की कोशिश की, लेकिन उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। जब वह आखिरकार बरगद के पेड़ के पास पहुँचा, तो वह उसकी कल्पना से भी ज़्यादा भयानक लग रहा था। मुड़ी हुई जड़ें और लटकी हुई लंबी बेलें मंद रोशनी में पंजों की तरह लग रही थीं।
अपनी हिम्मत साबित करने के लिए, अर्जुन ने पेड़ के विशाल तने को छुआ और चिल्लाया, “देखा? डरने की कोई बात नहीं है!”
लेकिन जैसे ही उसने कहा, एक ठंडी हवा उसके पास से गुज़री और लालटेन टिमटिमाने लगी। अचानक, उसने एक हल्की फुसफुसाहट सुनी। “तुम यहाँ क्यों आए हो?” आवाज़ ने कहा।
अर्जुन स्तब्ध रह गया। “कौन है वहाँ?” उसने पूछा, उसकी आवाज़ काँप रही थी।
फुसफुसाहट तेज़ हो गई, और लटकी हुई बेलें ऐसे हिलने लगीं जैसे अदृश्य हाथ हिला रहे हों। “यह मेरा घर है,” आवाज़ ने कहा। “अभी चले जाओ, या परिणाम भुगतो!”
अर्जुन ने हिम्मत जुटाने की कोशिश की। “मैं भूतों में विश्वास नहीं करता!” उसने चिल्लाया, लेकिन उसके पैर काँप रहे थे।
तभी, पेड़ के पीछे से एक आकृति उभरी। वह पीला था और अंधेरे में मंद-मंद चमक रहा था। उसकी खोखली आँखें सीधे उसे घूर रही थीं। भूतिया आकृति फुसफुसाते हुए बोली, “यहाँ बहुत से लोग आए हैं, लेकिन कोई भी बिना चोट खाए नहीं गया। क्या तुम अपनी किस्मत आजमाना चाहते हो?”
भयभीत होकर, अर्जुन ने अपनी लालटेन गिरा दी और जितनी जल्दी हो सके गाँव की ओर भागा। वह तब तक नहीं रुका जब तक वह अपने घर के अंदर सुरक्षित नहीं पहुँच गया। उसके दोस्त उसका इंतज़ार कर रहे थे, हँस रहे थे और जयकार कर रहे थे, यह सोचकर कि वह सफल हो गया है। लेकिन अर्जुन ने एक शब्द भी नहीं कहा।
उस दिन के बाद से, अर्जुन ने कभी भी ग्रामीणों की मान्यताओं का मज़ाक नहीं उड़ाया। प्रेतवाधित बरगद का पेड़ अछूता रहा, और किसी ने फिर से इसकी किंवदंती को परखने की हिम्मत नहीं की।
कहानी की सीख:
दूसरों की मान्यताओं और चेतावनियों का सम्मान करें, भले ही आप उन्हें न समझें या उनसे सहमत न हों। जिज्ञासा और अहंकार खतरे का कारण बन सकते हैं।